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सवर्ण और दलित के बाद सियासी चूल्हे पर पसमांदा मुस्लिम! बिहार-यूपी में बीजेपी का गेम प्लान समझिए

Updated on 29-06-2023 06:56 PM
पटना: एक बार फिर पसमांदा मुस्लिम की राजनीति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आवाज देकर देश की सियासत गरमा दी है। जिस तरह से हिंदुओं में पिछड़े और दलितों की जनसंख्या है, उसी अनुपात में बिहार में पसमांदा मुस्लिम मतों का 80 फीसदी वोटों का प्रतिनिधित्व करती है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही नहीं, बल्कि संघ ने भी अपना हाथ इन पसमांदा मुस्लिम की तरफ बढ़ाया है। जाहिर है, बिहार में पसमांदा राजनीति गरमाने के साथ ही बीजेपी की मुस्लिम पहुंच ने प्रतिद्वंद्वियों की बेचैनी बढ़ा दी है।

हो ये रहा है कि पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने की भाजपा की कोशिश को महागठबंधन ने हल्के में नहीं लिया है। दरअसल, पसमांदा मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय का एक पिछड़ा वर्ग है, जो आजादी के कई दशकों बाद भी उपेक्षित रहा है। भाजपा विशेष कर हिंदी पट्टी, मसलन बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इन्हें सुविधाएं उपलब्ध कर इनसे दूरी कम करने की कोशिश कर महागठबंधन को चुनौती दे डाली है।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकला था 'पसमांदा पॉलिटिक्स'


दरअसल, हैदराबाद में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी सम्मेलन के बाद भाजपा का पसमांदा अभियान तेज हो गया। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी से सभी समुदायों में 'वंचित और दलित' वर्गों तक पहुंच बनाने का आग्रह किया था। पीएम मोदी ने बीजेपी से सभी वर्गों तक पहुंचने के लिए 'स्नेह यात्रा' निकालने का भी सुझाव दिया था। तभी से हिंदी पट्टी खास कर बिहार और उत्तर प्रदेश में पसमांदा राजनीति पर गहन विचार-विमर्श होना शुरू हो गया।

उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए सफल रही पसमांदा राजनीति

पसमांदा मुस्लिम के करीब जाने की जो थ्योरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी थी। उस पर अमल कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सफलता का झंडा बुलंद किया। मिली जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निचले स्तर से पसमांदा मुस्लिम की भागीदारी प्रारंभ की। वार्ड, पंचायत, नगर परिषद में पसमांदा मुस्लिमों की भागीदारी सुनिश्चित की। परिणाम भी चौंकाने वाला था। यूपी के जिलों में 10-20 प्रतिशत सीटों पर पसमांदा मुस्लिमों ने भाजपा के लिए जीत का जश्न मनाया।

बिहार में भी पसमांदा को लेकर बीजेपी बना रही रणनीति


बीजेपी एमएलसी और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने 25 नवंबर को पटना में पसमांदा मुद्दे पर एक परिचर्चा का आयोजन किया था। इसमें आरएसएस नेता राम माधव, गुलाम गौस, साबिर अली और अख्तरी बेगम समेत कई मुस्लिम नेताओं ने शिरकत की थी। भाजपा का ये प्रयास पसमांदा मुस्लिमों से भाजपा के प्रति जो नफरत का अक्स है या जो ये मान बैठे हैं कि भाजपा को जो हराएगा, वोट उसी को देंगे वाली धारणा को भी तोड़ने की दिशा में उठा कदम ही तो था।

मनसा साफ हैं कि भाजपा उनके करीब जाकर उनके भ्रम तोड़ेगी, तभी वो महागठबंधन की धार को भी कुंद कर पाएगी। प्रदेश भाजपा ने सूफी संगीत के जरिए भी पसमांदा मुस्लिम से करीब होने की कोशिश लगातार कर भी रही है। अब हो ये रहा कि भाजपा अपनी कट्टरता के विरुद्ध राजनीति में खुद को खड़ा कर पसमांदा मुस्लिम के न केवल करीब जा रही है बल्कि उनकी भागीदारी की पंचायत, ब्लॉक और जिलों के स्तर के संगठन में जगह दी जा रही है। भाजपा अब उस नीति से खुद को दूर कर रही है, जहां चेहरे के नाम पर कुछ चेहरे थे। अब संगठन के हर स्तर पर इनकी मौजूदगी दर्ज कराने पर पहल कर रही है।


पसमांदा मुस्लिम राजनीति की हकीकत क्या है?

नीतीश कुमार से अलग होने के बाद महागठबंधन के वोटों का कागजी आंकड़ा एनडीए के आंकड़े से काफी आगे दिखता हैं। ऐसे में हम, लोजपा या वीआईपी के जरिए भाजपा जीत का तिलिस्म नहीं गढ़ सकती है। पसमांदा मुस्लिमों का मत हासिल कर महागठबंधन को संपूर्ण रूप से चुनौती दी जानी होगी। भाजपा जानती है कि मुस्लिम मतों का सॉफ्ट कॉर्नर बन कर सीमांचल के चार लोकसभा सीट को प्रभावित किया जा सकता है।

मसलन किशनगंज, पूर्णिया, अररिया, कटिहार पर पसमांदा का 10 प्रतिशत मत भाजपा का चुनावी रंगत बदल सकती है। चर्चा तो ये है कि भाजपा मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर जीत के लिए मुस्लिम उम्मीदवारों की भागीदारी भी बढ़ाएगी। ऐसा इसलिए भी कि सीमांचल के अलावा मधुबनी, दरभंगा, सिवान, सीतामढ़ी, गोपालगंज, गया, भागलपुर जैसे लोकसभा सीटों पर अपना दावा मजबूत किया जाए।


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